हर रोज ये सोच कर घर से निकलते है कि आज तुझसे मुलाकात होगी। कोशिश रहती है कि तुझे मिलूं तो ख़ुशी-2 पर जब तेरी बेरुखी इस दिल के अरमानों को तोड़ देती है तब गम के बादल जी तोड़ के बरसते है हम पर। इस कदर की रूह तक काँप जाती है सर्द से।
" आज फिर हमनें खुश होने की कोशिश की और आज फिर हमने चोट पर चोट खाया।
फिर बैठे है इंतज़ार में की कोई मरहम तो लगाये, हर शख्स है यहाँ मददगार की तलाश में। "
"गम इस बात का नहीं है दोस्त कि तू मुझे समझ नहीं पा रहा। गम इस बात का है कि तू चाहता नहीं समझना। काश इक नज़र देखे तू मेरे दर्द भरे फ़साने, भीग न जाएँ तेरी पलकें तो कहना।
अपने मन की बात कहना नहीं किसी से। ये बातें छुपाने के काबिल होती है।