हर रोज ये सोच कर घर से निकलते है कि आज तुझसे मुलाकात होगी। कोशिश रहती है कि तुझे मिलूं तो ख़ुशी-2 पर जब तेरी बेरुखी इस दिल के अरमानों को तोड़ देती है तब गम के बादल जी तोड़ के बरसते है हम पर। इस कदर की रूह तक काँप जाती है सर्द से।
" आज फिर हमनें खुश होने की कोशिश की और आज फिर हमने चोट पर चोट खाया।
फिर बैठे है इंतज़ार में की कोई मरहम तो लगाये, हर शख्स है यहाँ मददगार की तलाश में। "
"गम इस बात का नहीं है दोस्त कि तू मुझे समझ नहीं पा रहा। गम इस बात का है कि तू चाहता नहीं समझना। काश इक नज़र देखे तू मेरे दर्द भरे फ़साने, भीग न जाएँ तेरी पलकें तो कहना।
अपने मन की बात कहना नहीं किसी से। ये बातें छुपाने के काबिल होती है।
"तेरी कमजोरियों और मजबूरियों का फायदा हर शख्स अपने हिसाब से उठाएगा।
दिल में क्या है तेरे, ये तेरे दिल से बेहतर और कौन समझ पायेगा। "
किसी और की क्या बात करें तू खुद भी तो ऐसा ही कर रहा है। जानता है तू ये बात अच्छे से कि तेरे बिना हम उदास हो जाते है, ये भी जानता है तू कि तेरी बेरुखी हमारी साँसे रोक देती है। इन्ही मजबूरियों का फायदा उठा रहे हो तुम, बार बार इस्तेमाल करके दर्द दिए जा रहे हो तुम।
तुझे नफरत हमसे इस कदर हुई की, हमारी बाते भी नहीं सुनना चाहते हो तुम, कौन सा जुर्म आखिर कौन सा जुर्म हमने किया है जो सजा-ऐ-मौत दे रहे हो तुम। खैर इस जिन्दगी से हमें इतनी मोहब्बत भी नहीं है तेरे बिना, दे दे सजा-ए-मौत कि जी न पाएंगे तेरे बिना। शायद मेरे बाद दिल से तेरे कुछ नफरत तो कम होगी मेरे लिए, मेरी मौजूदगी का अहसास हो शायद तुझे मेरे बिना। ये न सोच की तेरी बेरुखी मोहब्बत मेरी कम कर देगी।
"मैंने कब माँगा है अपनी वफाओं का सिला,
बस दर्द देते रहो मोहब्बत बढती जायेगी।"
No comments:
Post a Comment