Friday, September 21, 2012

Ye Bekarari


         यूं तो रोज ही तड़पता हूँ तेरी याद में पर आज तो मरते - मरते बचा हूँ। बहुत ज्यादा बेकरारी है। संगदिल बेरहम, खुदा तू क्यों बन रहा है। ऐ खुदा तू क्यों पत्थर बना बैठा है पत्थर दिल उन्हें बना कर।

          हो सकता है की वो दर्द से रोयें हो मेरे, हो सकता है कि उनके आँसू किसी ने न देखें हो पर उन आंसुओं का क्या फायदा जब--- " तेरे आँसू मुझे रुलाते हो और मेरा गम तुझे रुलाता हो "

          शायद वो खफा इस बात से है कि बिना बात के हमने उनका तमाशा बना दिया।
लेकिन जब आग लगी है तो धुआं तो उठेगा ही -- लोग पुछेंगें भी कैसी आग है ये। भले ही ये आग मेरे घर में लगी हो, पडोसी तुम थे, तो लोग तुमसे भी तो पूछेंगे, कहेंगें की आप बुझाने वालों में क्यों नहीं है।
          खैर अब ये आग लग चुकी है, थक गया हूँ मै इसे बुझाते - बुझाते। तुने तो पहले ही ये कह कर मेरा साथ छोड़ दिया की तेरे घर की आग है तू जाने। मेरा घर तो अब बच न पायेगा कर दिया है मैंने इसे आग के हवाले। सारे रास्ते भी बंद कर दिए अपने हाथों से -- कि कोई चाह कर भी न बुझा पाए इसे।
        लेकिन ऐ मेरे दोस्त तू फिक्र मत कर अपने घर की खुद जल जाऊंगा इस आग को बुझाने की खातिर पर तेरे घर को कुछ न होने दूंगा।


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हजारो रात का जागा हूँ सोना चाहता हूँ अब।
तुझे मिलके मै ये पलके भिगोना चाहता हूँ अब।।
बहुत ढूंडा है तुझको खुद में, इतना थक गया हूँ मै ।
कि खुद को सौप कर तुझमे, खोना चाहता हूँ मै ।।
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डॉ कुमार विश्वास 

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