Monday, October 1, 2012

Meri Chahat



                  मोहब्बत के अफ़साने के कई सवाल लिए बैठा हूँ। क्यों न तुझे मेरी वफ़ा रास आयी, आखिर चाहता ही क्या था मै तुझसे, बस एक मरहम मेरे इस दिल के लिए - तेरे दीदार का। मैंने ऐसा कहा भी कब था की तू भी मेरी चाहत को चाहे, तुझे भी इश्क हो मुझसे,  गर मुझे है तो। कब कहा था मैंने ऐसा कि मेरा दिल तेरे लिए धडकता है तो तेरा  दिल भी मेरे लिए मचले। फिर क्यों  तुमने मुझे बेगाना बना दिया ऐसा क्या नहीं देना चाहते हो तुम  मुझे। 

" तुझे  चाहने  की  चाह में  मै   हर एक   चाह  को   भूल बैठा।
शिकवा न किया कभी जफ़ाओं का हर एक आह को भूल बैठा।।
तुझसे  मिलने   की ख़ुशी  इतनी  थी  मुझे  कि  ऐ  मेरे हमदम ।
तुझ    तक  पहुचनें  की  हर एक   राह   भी को भूल  बैठा ।। "

           काश वो राश्ते जो तुझ तक पहुचते थे खुले छोड़ दिए होते तुमने। लेकिन नहीं, वैसे तो हर एक बात भूल  जाते थे तुम। इस बार हर एक दरवाजा याद कर कर के बंद किये है तुमने। हर एक दरवाजे पे  तुमने अपने हाथो से ताला लगाया है। उन्ही रास्तो उन्ही दरवाजों पर मैं तब से खड़ा रो रहा हूँ, तेरी याद में पलकें भिगो रहा हूँ उम्मीद है किसी दिन खोलेगी तू एक दरवाजा बस इसी उम्मीद के सहारे जिए जा रहा हूँ।

          उदासी रहती तो है हर वक़्त  फिर भी हस लेता हूँ सोचता हूँ कही कोई इल्जाम तुझ पर न लगा दे मेरे गम  का। दर्द तो मेरे दिल ने ही मुझे दिया है मेरे दिल ने ही मुझसे बेवफाई की है। गर इल्जाम-ए-इश्क तुझ पर लगे तो ये गलत होगा।

" दर्द  में  भी   मुस्कुराना    सीख   रहा   हूँ  मै।
आंसुओं    को   पीना   भी    सीख  रहा  हूँ  मै।।
कोई  मेरे  आंसुओं  की  वजह   तुझे न समझ ले।
तिनका आँख में गिरने का बहाना सीख रहा हूँ मै।।"


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